रविवार, 28 अगस्त 2011

लोकपाल से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा तो क्या करे? यूं ही चलने दे?

लोकपाल से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा....... तो क्या करे? यूं ही चलने दे?


   


यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब देश भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठ खड़ा होता दिखाई दे रहा है तो अनेक लोग ही नहीं प्रभावशाली व्यक्ति तक लोकपाल की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे है.  
इस बात से  सभी सहमत होंगे कि कानून सड़क पर नहीं बनते और हमें संसदीय मर्यादाओ प्रक्रिया को ध्यान में रखना चाहिए. भारतीय संविधान, संसदीय परंपरा व गरिमा एवं देश के प्रति प्रत्येक भारतीय नागरिक आस्था रखता है. पर यह भी सही है कि सड़क पर उतरे हुए लोग संसद को सोचने के लिए बाध्य कर सकते है. अन्ना हजारे की नीति भले ही दबाव की रही हो पर उनका कार्य निजी हित में नहीं है.
अगर किसी क्षेत्र में चिकित्सालय खोलने अथवा चिकित्सक को तैनात करने की मांग क्षेत्रवासी कर रहे हो तो क्या यह कहना उचित होगा कि "इससे क्या होगा? क्या रोग दूर हो जायेंगे?" यह सही है कि किसी क्षेत्र में चिकित्सालय खोलने अथवा चिकित्सक को तैनात करने से ही लोग स्वस्थ नहीं होते पर कुछ सीमा तक नियंत्रण तो होता ही है. 
इसी तरह पुलिस की व्यवस्था के बावजूद अपराध होते है, तो क्या मात्र इसी वजह से पुलिस व्यवस्था समाप्त कर दी जाये? 
दरअसल यह काफी कुछ हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है.  
वही बात है कि ग्लास आधा भरा है कि आधा खाली है? 

"लोकपाल से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा" इसको ऐसे भी तो कहा जा सकता है कि यद्यपि लोकपाल से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा पर भ्रष्टाचार समाप्त करने की दिशा में यह एक सार्थक कदम तो है ही. 
वास्तव में किसी भी समाज में सारे मनुष्य एक जैसे नहीं होते. 
मुख्य रूप से उनको तीन श्रेणियों में बांटा  जा सकता है:-
1 - अंतर्मन से अच्छे, निर्मल ह्रदय
वाले व्यक्ति. समाज में यदि कोई कानून न हो तो भी जो अपराध नहीं करते.
2 - ढुलमुल नीति वाले, प्रतिकूल स्थिति हो तो ईमानदार, नियम मानने वाले, अच्छे दिखने वाले. जो पकडे जाने के भय से अपराध नहीं करते पर मन कमजोर होता है.
मौका मिलते ही अपराध करने से नहीं चूकते.
3 -  स्वभाव से ही नियम कानून की परवाह नहीं करने वाले. कितनी भी, कैसी भी सजा का कानून हो, पर अपराध करेंगे.

 
तो
क्रमांक 1  या 3 पर अंकित लोगो के लिए कानून नहीं होते. 
कानून तो क्रमांक 2 वाले ढुलमुल ह्रदय के लोगों को नियंत्रण में रखने के लिए होते है.  
अधिकांश लोग ऐसे ही होते है. भारत में सड़क पर थूकेंगे. सड़क पर कचरा, खाली रैपर आदि निस्संकोच फेकेंगे पर विदेश में दंड के भय से सभ्य बन जायेंगे. 

इसलिए लोकपाल से भ्रष्टाचार ख़त्म होगा या नहीं यह तो समय बताएगा पर कम से कम उसका कुछ भय तो होगा.

5 टिप्‍पणियां:

  1. भाई साहब! आपने सही मुद्दा उठाया है . ये कुतर्क पंडितों को समझ ही नहीं आता .
    बुधवार, ३१ अगस्त २०११
    मुद्दा अस्पताल नहीं है ?
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  2. मुद्दा अस्पताल नहीं है ?
    इन दिनों कुछ लोग ये सवाल उठा रहें हैं अन्ना इलाज़ कराने "कोर्पोरेट अस्पताल मेदान्ता सिटी गुडगाँव "क्यों गये ?यह भी कि उनकी कोर कमेटी में अल्पसंख्यक नहीं थे पहले सवाल का ज़वाब यह है -अन्ना के प्राणों की रक्षा के लिए लोक ने उन्हें अच्छे से अच्छा अस्पताल मुहैया करवाया है ,वे किसी अन्य भारतीय की तरह अमरीका इलाज़ कराने नहीं गए हैं .कैंसर के इलाज़ के लिए "राजीव गांधी कैंसर अस्पताल "की अनदेखी करके वे न्यूयोर्क के एक कैंसर अस्पताल में नहीं पहुंचे हैं .
    रहा सवाल अल्पसंख्यकों का यदि वह अपने गुसल खाने से ही पेट खराब होने की वजह से बाहर नहीं आते इसमें अन्ना का क्या कुसूर है देश के ८०-८५ %लोग उनके साथ खड़े थे ,खड़े हैं.
    रही बात सरकारी अस्पतालों की जैसी सरकार वैसे ही उसके अस्पताल हैं ।
    कुछ पंचांगी तत्व (असंवैधानिक तत्व ) जो विदेशों से पुरूस्कार लेकर यहाँ चैनलों पर पसरे रहतें हैं ,वे कोर्पोरेट -सरकारी दुरभिसंधि के किले को अन्ना द्वारा न बींध पाने की बात कर रहें हैं .सवाल ये है ये अरुंधती रॉय जैसे लोग जिनका शारीरिक कद भी उतना ही कम है जितना मानसिक ये खुद क्या कर रहें हैं ?
    इन्हेंजन -आधार विहीन अलोकतांत्रिक हुर्रियत की गोद में बैठ कर भारत में कब्रों के सुधार की बात उठानी चाहिए ।
    अन्ना जी ने चुनाव सुधार ,राईट टू रिकाल ,राईट टू रिजेक्ट की बात उठाई है .केवल बाहुबल ,झूठ्बल ,जाति बल से चुनाव जीत कर संसद में चले आना लोकतांत्रिक होना नहीं है ?यदि ये यूं ही चलता रहा तो चोर उच्चक्के ,डाकू लुटेरे अपराध तत्वों की संख्या वर्तमान १७० के बहुत आगे चली जायेगी ।
    अकेले अन्ना से आप क्या क्या उम्मीद करतें हैं ,कब्रों की दुर्दशा ,पाकिस्तान के हालात ,कायनात में जहां भी गड़बड़ है वह अन्ना सुधारें?
    यह पंचान्गियों द्वाराअन्ना आन्दोलन को मुद्दों से भटकाने की ना -कामयाब कोशिश है .मुदा अस्पताल नहीं है

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  3. हर आदमी की अपनी राय है, जरूरी नहीं कि आप उससे सहमत हों, मगर आप किसी के अभिव्यक्ति के अधिकार पर सवाल खडा नहीं कर सकते, क्या केवल अन्ना वालों को ही हर किसी के बारे में कुछ भी कहने का अधिकार है

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  4. आपकी बात से सहमत हूँ ... शुरुआत तो हो कम से कम .. कुछ नहीं होगा इसलिए शुरुआत न करो ... ये बात समझ से परे की है ...

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