लोकपाल से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा....... तो क्या करे? यूं ही चलने दे?
यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब देश भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठ खड़ा होता दिखाई दे रहा है तो अनेक लोग ही नहीं प्रभावशाली व्यक्ति तक लोकपाल की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे है.
वही बात है कि ग्लास आधा भरा है कि आधा खाली है?
"लोकपाल से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा" इसको ऐसे भी तो कहा जा सकता है कि यद्यपि लोकपाल से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा पर भ्रष्टाचार समाप्त करने की दिशा में यह एक सार्थक कदम तो है ही.
वास्तव में किसी भी समाज में सारे मनुष्य एक जैसे नहीं होते.
मुख्य रूप से उनको तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:-
1 - अंतर्मन से अच्छे, निर्मल ह्रदय वाले व्यक्ति. समाज में यदि कोई कानून न हो तो भी जो अपराध नहीं करते.
2 - ढुलमुल नीति वाले, प्रतिकूल स्थिति हो तो ईमानदार, नियम मानने वाले, अच्छे दिखने वाले. जो पकडे जाने के भय से अपराध नहीं करते पर मन कमजोर होता है. मौका मिलते ही अपराध करने से नहीं चूकते.
3 - स्वभाव से ही नियम कानून की परवाह नहीं करने वाले. कितनी भी, कैसी भी सजा का कानून हो, पर अपराध करेंगे.
तो क्रमांक 1 या 3 पर अंकित लोगो के लिए कानून नहीं होते.
कानून तो क्रमांक 2 वाले ढुलमुल ह्रदय के लोगों को नियंत्रण में रखने के लिए होते है.
अधिकांश लोग ऐसे ही होते है. भारत में सड़क पर थूकेंगे. सड़क पर कचरा, खाली रैपर आदि निस्संकोच फेकेंगे पर विदेश में दंड के भय से सभ्य बन जायेंगे.
इसलिए लोकपाल से भ्रष्टाचार ख़त्म होगा या नहीं यह तो समय बताएगा पर कम से कम उसका कुछ भय तो होगा.
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यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब देश भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठ खड़ा होता दिखाई दे रहा है तो अनेक लोग ही नहीं प्रभावशाली व्यक्ति तक लोकपाल की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे है.
इस बात से सभी सहमत होंगे कि कानून सड़क पर नहीं बनते और हमें संसदीय मर्यादाओ प्रक्रिया को ध्यान में रखना चाहिए. भारतीय संविधान, संसदीय परंपरा व गरिमा एवं देश के प्रति प्रत्येक भारतीय नागरिक आस्था रखता है. पर यह भी सही है कि सड़क पर उतरे हुए लोग संसद को सोचने के लिए बाध्य कर सकते है. अन्ना हजारे की नीति भले ही दबाव की रही हो पर उनका कार्य निजी हित में नहीं है.
अगर किसी क्षेत्र में चिकित्सालय खोलने अथवा चिकित्सक को तैनात करने की मांग क्षेत्रवासी कर रहे हो तो क्या यह कहना उचित होगा कि "इससे क्या होगा? क्या रोग दूर हो जायेंगे?" यह सही है कि किसी क्षेत्र में चिकित्सालय खोलने अथवा चिकित्सक को तैनात करने से ही लोग स्वस्थ नहीं होते पर कुछ सीमा तक नियंत्रण तो होता ही है.
इसी तरह पुलिस की व्यवस्था के बावजूद अपराध होते है, तो क्या मात्र इसी वजह से पुलिस व्यवस्था समाप्त कर दी जाये?
दरअसल यह काफी कुछ हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है. इसी तरह पुलिस की व्यवस्था के बावजूद अपराध होते है, तो क्या मात्र इसी वजह से पुलिस व्यवस्था समाप्त कर दी जाये?
वही बात है कि ग्लास आधा भरा है कि आधा खाली है?
"लोकपाल से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा" इसको ऐसे भी तो कहा जा सकता है कि यद्यपि लोकपाल से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं होगा पर भ्रष्टाचार समाप्त करने की दिशा में यह एक सार्थक कदम तो है ही.
वास्तव में किसी भी समाज में सारे मनुष्य एक जैसे नहीं होते.
मुख्य रूप से उनको तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:-
1 - अंतर्मन से अच्छे, निर्मल ह्रदय वाले व्यक्ति. समाज में यदि कोई कानून न हो तो भी जो अपराध नहीं करते.
2 - ढुलमुल नीति वाले, प्रतिकूल स्थिति हो तो ईमानदार, नियम मानने वाले, अच्छे दिखने वाले. जो पकडे जाने के भय से अपराध नहीं करते पर मन कमजोर होता है. मौका मिलते ही अपराध करने से नहीं चूकते.
3 - स्वभाव से ही नियम कानून की परवाह नहीं करने वाले. कितनी भी, कैसी भी सजा का कानून हो, पर अपराध करेंगे.
तो क्रमांक 1 या 3 पर अंकित लोगो के लिए कानून नहीं होते.
कानून तो क्रमांक 2 वाले ढुलमुल ह्रदय के लोगों को नियंत्रण में रखने के लिए होते है.
अधिकांश लोग ऐसे ही होते है. भारत में सड़क पर थूकेंगे. सड़क पर कचरा, खाली रैपर आदि निस्संकोच फेकेंगे पर विदेश में दंड के भय से सभ्य बन जायेंगे.
इसलिए लोकपाल से भ्रष्टाचार ख़त्म होगा या नहीं यह तो समय बताएगा पर कम से कम उसका कुछ भय तो होगा.